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CHEETA: Bharatiya Jungalo ka Goom Shahjada (Hindi)

CHEETA: Bharatiya Jungalo ka Goom Shahjada (Hindi)

$25.00
Author:Kabeer Sanjay
ISBN 13:9789389915655
Binding:Hardbound
Language:Hindi
Year:2020
Subject:Zoology/Physiology of animals

About the Book

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के साढ़े तीन अरब सालों में न जाने कितने क़िस्म के जीव पैदा हुए और मर-खप गये। कॉकरोच और मगरमच्छ जैसे कुछ ऐसे जीव हैं जो हज़ारों-लाखों सालों से अपना अस्तित्व बनाये रखे हुए हैं। जबकि, जीवों की हज़ारों प्रजातियाँ ऐसी रही हैं, जो समय के साथ तालमेल नहीं बैठा सकीं और विलुप्त हो गयीं। उनमें से कुछ प्रजातियाँ ऐसी भी थीं जो पूरी प्रकृति की नियन्ता भी बन चुकी थीं। लेकिन, जब वे ग़ायब हुईं तो उनका निशान ढूँढ़ने में भी लोगों को मशक़्क़त करनी पड़ी। हालाँकि, विलुप्त हुए जीवों ने भी अपने समय की प्रकृति और जीवों में ऐसे बड़े बदलाव किये, जिनके निशान मिटने आसान नहीं हैं। भारत के जंगलों से भी एक ऐसा ही बड़ा जानवर हाल के वर्षों में विलुप्त हुआ है, जिसके गुणों की मिसाल मिलनी मुश्किल है। चीता कभी हमारे देश के जंगलों की शान हुआ करता था। उसकी चपल और तेज़ रफ़्तार ने काली मृग जैसे उसके शिकारों को ज़्यादा-से-ज़्यादा तेज़ भागने पर मजबूर कर दिया। काली मृग या ब्लैक बक अभी भी अपनी बेहद तेज़ रफ़्तार के लिए जाने जाते हैं। इस किताब में भारतीय जनमानस में रचे-बसे चीतों के ऐसे ही निशानों को ढूँढ़ने के प्रयास किये गये हैं। यक़ीन मानिए कि यह निशान भारत के जंगलों में अभी भी बहुतायत से बिखरे पड़े हैं। ज़रूरत सिर्फ़ इन्हें पहचानने की है। भारतीय जंगलों के यान कोवाच की मौत भले ही हो चुकी है लेकिन उनका अन्त नहीं हुआ है। उनके अस्तित्व की निशानियाँ अभी ख़त्म नहीं हुई हैं।