Pramanavarttikam of Acarya Dharmakirti with his own commentary of Acarya Manorathanandi (Sanskrit and Hindi)
$100.00
Author: | Kashinath Nyaupane |
ISBN 13: | 9788124611463 |
Binding: | Hardbound |
Language: | Sanskrit and Hindi |
Year: | 2022 |
Subject: | Philosophy and Religion/Indology |
About the Book
भारतवर्षीय दर्शन परम्परा में अनेक सम्प्रदाय, पद्धतियां, चिन्तन–मार्ग और साधना के आयाम हैं। वे सभी पद्धतियाँ मुख्यत: तीन ग्रन्थाें पर आधारित हैं। जिनमें कुमारिल भट्ट का श्लाेकवार्त्तिक, धर्मकीर्ति का प्रमाणवार्त्तिक, तथा गङ्गेश उपाध्याय का तत्त्वचिन्तामणि हैं। वे तीन ग्रन्थ आज तक की भारतीय दर्शन परम्परा के प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं और तीन मार्गाें के रूप में स्थापित हैं। हम कुछ भी चिन्तन, लेखन या विचार करते हैं ताे वे इन तीनाें में से किसी एक मार्ग में स्वतः ही चले आते हैं।
धर्मकीर्ति का यह प्रमाणवार्त्तिक ग्रन्थ अत्यन्त कठिन हाेने से इस ग्रन्थ का अब तक किसी भी भाषा में पूर्ण रूप से अनुवाद नहीं हाे पाया है। इसके कुछ श्लाेक अंग्रेज़ी में अनुदित हैं ताे कुछ हिन्दीए फ्रेंचए जर्मन और नेपाली में भी अनुदित हुए हैं। किन्तु अब तक पूर्ण ग्रन्थ का और इसकी किसी भी टीका का पूर्ण अनुवाद न हाेना इसकी भाषा का कठिन हाेना, विचाराें का गूढ़ हाेना तथा अत्यन्त दुरुह प्रकरणाें का हाेना ही कारण रहा है। कुछ विदेशी विद्वान् इसका अंग्रेज़ी में अनुवाद करने के लिए भी लगे हुए हैं किन्तु बीसाें वर्षाें के बाद भी वे इसे पूरा नहीं कर सके हैं। अतः यह हिन्दी अनुवाद अपने आप में प्रथम पूर्ण अनुवाद और सम्पादन है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में पाँच प्रकरण हैं – 1. प्रमाण सिद्धि परिच्छेद, मनाेरथनन्दी के साथय; 2. प्रत्यक्ष परिच्छेद, मनाेरथनन्दी के साथ; 3. स्वार्थानुमान परिच्छेद, स्वाेपज्ञवृत्ति सहित (जाे कि धर्मकीर्ति की अपनी ही वृत्ति है); 4. स्वार्थानुमान परिच्छेद, मनाेरथनन्दी के साथ; और 5. परार्थानुमान परिच्छेद, मनाेरथनन्दी के साथ।
इस ग्रन्थ में प्रथम बार समग्र प्रमाणवार्त्तिक का उपस्थापन किया गया है। इस में स्वयं धर्मकीर्ति की स्वाेपज्ञवृत्ति स्वार्थानुमान परिच्छेद में वर्णित है जिसका अनुवाद सहित उपस्थापन पाँचवें परिच्छेद के रूप में रखा गया है।