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Shadinama (Hindi)

Shadinama (Hindi)

$25.00
Author:Meera Jaiswal
ISBN 13:9788194713692
Binding:Hardbound
Language:Hindi
Year:2020
Subject:Hindi Literature

About the Book

बेटियाँ पराया धन होती हैं, उनका असली घर तो उनकी ससुराल होती है, लोग क्या कहेंगे, शादी ज़रूर होनी चाहिए. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हिस्सा वह भी थी. इसको निभाना भी था और उसने निभाया भी. कितने दिन तक बेटी को बिठाये रखती. कहीं तेलगु भाषा का एक गीत पढ़ा था, जिसका भाव था- छोटे से ताल में खेलती हुई मेढकी सर्प की फन की छाया में घर बसाती है. परंपरा के होंठ इस गीत को गाते हैं और कुछ नहीं कहते. जानते हैं कि घर से बाहर कड़ी धूप है. इसलिए बेटी के सर के लिए छाया खरीदनी है. सर की छाया बेटी के लिए नेकनामी है. इज्ज़त-आबरू है. भले ही डसने का ख़तरा हमेशा सर पर तना रहता है. शादी नाम की परंपरा को निभाना और पति नाम की छाया ख़रीदना ही है. शादी चाहे प्रेमविवाह हो या अरेंज्ड, ज़्यादातर हश्र सबका एक सा होता है. पति चाहे जलालपुर के दयाशंकर हों या कनैडियन आंद्रे, पत्नी से अपेक्षा और व्यवहार एक सा होता है. देश हो या विदेश. सामजिक रीति-रिवाज़, परम्पराएं-मान्यताएं सब अपनी जगह और पुरुष नाम के जीव के सत्ता की ठसक अपनी जगह. हिन्दुस्तान हो या कनाडा में बसी सुरम्या. शादी और वैवाहिक-जीवन के नाम पर सपनों के पंखों को कतरने और उम्मीदों के जिबह होने की दास्ताँ, सब में आपको समानता मिलेगी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि क़ीमत औरत को ही चुकानी पड़ती है. बेड़ियाँ उसी के पावों के लिए होती हैं. वर्जनाएं उसी के हिस्से में आती हैं. इसे क्या मानें? नियति? क़िस्मत का लिखा...परम्पराओं और सामाजिक मान्यताओं की बलि चढ़ना ?